भारतीय नौसेना के डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार ने हाल ही में इंडोनेशिया में ऑपरेशन सिंदूर पर एक बयान दिया, जिसने देश में हलचल मचा दी। उनके बयान के बाद भारतीय दूतावास और रक्षा मंत्रालय को इस मामले में सफाई देनी पड़ी। इसी बीच ‘डिफेंस अताशे’ पद भी चर्चा में आ गया, जो भारत सरकार ने पिछले साल ही स्थापित किया था। भारत ने पहली बार दुनियाभर के कई देशों में अपने डिफेंस अताशे नियुक्त किए, ताकि रक्षा और कूटनीतिक संबंधों को मजबूत किया जा सके। आइए जानते हैं डिफेंस अताशे क्या होते हैं, उनका क्या काम होता है, और इस पद को क्यों और कैसे बनाया गया।
डिफेंस अताशे क्या होते हैं और क्या करते हैं?
डिफेंस अताशे भारतीय सशस्त्र बलों के ऐसे अधिकारी होते हैं जिन्हें भारतीय दूतावास या उच्चायोग में तैनात किया जाता है। ये अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं और देश के रक्षा हितों की रक्षा, द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को बढ़ावा देने का काम करते हैं। इनके अलावा वे उस देश में भारतीय सेना, नौसेना या वायुसेना से जुड़े मामलों में सलाहकार की भूमिका निभाते हैं।
डिफेंस अताशे राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा मामलों में अलग-अलग पदों पर तैनात होते हैं। इन्हें संविधान के अनुच्छेद 7 में अधिकारिक रूप से मान्यता दी गई है। इनका मुख्य कार्य देश के रक्षा हितों की सुरक्षा और विभिन्न देशों के साथ रक्षा क्षेत्र में सहयोग स्थापित करना होता है।
कहां-कहां नियुक्त किए गए?
भारत ने डिफेंस अताशे की नियुक्ति कई देशों में की है, जिनमें अफ्रीकी देशों, इंडोनेशिया, मोजाम्बिक, इथियोपिया, आइवरी कोस्ट, फिलीपींस, पोलैंड, आर्मेनिया जैसे देशों के साथ-साथ नाटो, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय भी शामिल हैं। इन नियुक्तियों का मकसद वैश्विक स्तर पर भारत की सैन्य कूटनीति को मजबूती देना है।
डिफेंस अताशे पद क्यों अस्तित्व में आया?
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने अफ्रीका, दक्षिणी सागर समेत कई जगहों पर अपने सैन्य प्रभाव का विस्तार किया है। उसने कई देशों में सैन्य ठिकाने स्थापित कर लिए हैं। भारत को इस चुनौती का जवाब देने और वैश्विक रक्षा सहयोग को बढ़ावा देने के लिए डिफेंस अताशे पद की जरूरत महसूस हुई। ये अधिकारी भारत के लिए रणनीतिक साझेदारों के साथ कूटनीतिक, सैन्य और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करने का काम करते हैं।
नियुक्ति प्रक्रिया और रैंक
डिफेंस अताशे की नियुक्ति देश के महत्व के आधार पर की जाती है। अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन जैसे बड़े देशों में इस पद के लिए उच्च रैंक वाले अधिकारी जैसे ब्रिगेडियर (फ्लैग रैंक) चुने जाते हैं। वायुसेना और नौसेना से भी इस रैंक के अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं। अन्य देशों के लिए कर्नल रैंक के अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं। चयन प्रक्रिया काफी कठोर होती है, जिसमें उम्मीदवार की सैन्य योग्यता, कूटनीतिक क्षमता और अनुभव पर ध्यान दिया जाता है। चयन के बाद उन्हें विशेष ट्रेनिंग भी दी जाती है। डिफेंस अताशे की पोस्टिंग सामान्यतः तीन वर्षों के लिए होती है।
कैप्टन शिव कुमार के विवादित बयान
इंडोनेशिया में तैनात भारतीय डिफेंस अताशे कैप्टन शिव कुमार ने 10 जून को जकार्ता की एक यूनिवर्सिटी में ‘भारत-पाक वायु युद्ध और इंडोनेशिया की सामरिक रणनीति’ विषय पर सेमिनार में कहा कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय वायुसेना को पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों पर हमला करने की अनुमति नहीं थी, केवल आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाने को कहा गया था। उन्होंने यह भी बताया कि इस ऑपरेशन में भारत ने कई लड़ाकू विमान खोए।
कैप्टन के इस बयान को लेकर विवाद खड़ा हो गया क्योंकि इससे ऑपरेशन के रणनीतिक पक्ष और उसके कार्यान्वयन पर सवाल उठने लगे। इस बयान के बाद भारतीय दूतावास और रक्षा मंत्रालय को स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी और उन्होंने कहा कि ऑपरेशन का पूरा इतिहास और रणनीति गोपनीय होती है, इसलिए अफवाहों और आंशिक जानकारियों पर ध्यान न दिया जाए।
निष्कर्ष
डिफेंस अताशे भारत की सैन्य कूटनीति में एक नई और महत्वपूर्ण कड़ी हैं। ये अधिकारी भारत के रक्षा हितों की रक्षा के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर रक्षा संबंधों को मजबूती देने में मदद करते हैं। कैप्टन शिव कुमार के बयान से यह स्पष्ट हुआ कि डिफेंस अताशे पद संवेदनशील और जिम्मेदार पद है, जहां हर शब्द का प्रभाव होता है। भविष्य में ऐसे पदों पर तैनात अधिकारियों को सावधानी और जिम्मेदारी से अपने विचार प्रस्तुत करने की जरूरत होगी।ही है।