मुंबई, 25 मई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत को शक्तिशाली बनना ही होगा, क्योंकि देश की सभी सीमाओं पर बुरी ताकतों की सक्रियता दिखाई दे रही है। उन्होंने हिंदू समाज से एकजुट होने और भारतीय सेना को इतना सशक्त बनाने की अपील की, ताकि कोई भी ताकत मिलकर भी उसे पराजित न कर सके। भागवत ने यह बात संघ की साप्ताहिक मैगजीन ऑर्गनाइजर को दिए एक विशेष इंटरव्यू में कही, जो बेंगलुरु में दो महीने पहले हुई संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद रिकॉर्ड किया गया था। उन्होंने कहा कि शक्ति का उपयोग केवल दुष्टता को मिटाने के लिए होना चाहिए, और वह शक्ति धर्म से जुड़ी होनी चाहिए। सद्गुण और बल—दोनों की आवश्यकता बताते हुए उन्होंने कहा कि हमारी शक्ति का स्वभाव लोक-रक्षा और अधर्म के विनाश में होना चाहिए। भागवत ने यह भी कहा कि अब कृषि, औद्योगिक और वैज्ञानिक क्रांतियों का दौर समाप्त हो चुका है, और अब समय है कि दुनिया धार्मिक क्रांति के रास्ते पर चले, जिसका नेतृत्व भारत को करना चाहिए।
RSS प्रमुख ने स्पष्ट किया कि जब कोई विकल्प न बचे, तो दुष्टता का अंत बलपूर्वक करना ही एकमात्र रास्ता होता है। भारत का उद्देश्य वैश्विक वर्चस्व नहीं है, बल्कि हर व्यक्ति को शांतिपूर्ण, स्वस्थ और सशक्त जीवन देने की दिशा में आगे बढ़ना है। उन्होंने कहा कि दुनिया तभी हिंदुओं की परवाह करेगी, जब हिंदू समाज खुद को सशक्त बनाएगा। भारत और हिंदू एक-दूसरे से जुड़े हैं, और एक संगठित हिंदू समाज ही उन सभी को साथ लेकर चल सकता है, जो खुद को हिंदू नहीं मानते, क्योंकि किसी समय वे भी हिंदू ही थे। उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों का भी जिक्र किया और कहा कि वहां हिंदू अब प्रतिकार करने लगे हैं, और कहते हैं कि वे भागेंगे नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे। भागवत ने हिंदू समाज को मजबूत करने की प्रक्रिया को अभी अधूरा बताया और कहा कि जब तक यह कार्य पूरा नहीं होता, तब तक हिंदू वैश्विक स्तर पर प्रभावी नहीं बन सकते। संघ की 100 वर्षों की यात्रा का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि शुरुआत में संघ के पास न साधन थे, न मान्यता और न कार्यकर्ता। समाज की उपेक्षा और विरोध के बावजूद संघ आगे बढ़ा और 1950 तक यह स्पष्ट हो गया कि वह सफल होगा। उन्होंने कहा कि उसी पद्धति से हिंदू समाज को भी संगठित किया जा सकता है। आपातकाल के बाद संघ की ताकत कई गुना बढ़ी। महिलाओं की भागीदारी पर उन्होंने कहा कि महिलाओं का उद्धार पुरुष नहीं कर सकते, वे स्वयं अपनी शक्ति के बल पर आगे आएंगी। इसलिए संघ महिलाओं को वह सब करने के लिए सशक्त करता है, जो वे करना चाहती हैं।