अयोध्या न्यूज डेस्क: अयोध्या की मिट्टी अपने भीतर आस्था और इतिहास दोनों को संजोए हुए है। इन्हीं धरोहरों में शामिल है दिलकुशा महल, जिसे नवाब शुजाउद्दौला ने 18वीं शताब्दी में सरयू किनारे बनवाया था। अपनी भव्य कला और स्थापत्य के कारण यह महल अवध की शान माना जाता था। लेकिन वक्त बीतते-बीतते इस इमारत की पहचान बदल गई और इसका स्वरूप बिगड़ता चला गया।
1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने नवाबों की शान को चोट पहुंचाने के लिए इस महल को अफीम के व्यापार का केंद्र बना दिया। धीरे-धीरे यह दिलकुशा महल "अफीम कोठी" के नाम से मशहूर हो गया। आज़ादी के बाद भी यह धरोहर दशकों तक उपेक्षित रही। हालांकि साल 2017 में प्रदेश में नई सरकार आने के बाद अयोध्या के विकास कार्यों पर जोर दिया गया और इसी क्रम में इस ऐतिहासिक इमारत पर भी ध्यान केंद्रित हुआ।
सरकार ने अफीम कोठी की नकारात्मक छवि को खत्म करने के लिए इसका नाम बदलकर "साकेत भवन" रखा और इसके जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण के लिए 16.82 करोड़ रुपये स्वीकृत किए। अब यह इमारत केवल खंडहर नहीं रही, बल्कि धीरे-धीरे फिर से अपनी गरिमा लौटाने लगी है। यहां देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जा रही हैं ताकि श्रद्धालु और पर्यटक दोनों यहां दर्शन कर सकें।
दिलकुशा से अफीम कोठी और अब साकेत भवन तक की यह यात्रा सिर्फ नाम बदलने की कहानी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देने और आस्था से जोड़ने का प्रतीक है। आने वाले समय में यह भवन अयोध्या के नए सांस्कृतिक प्रतीक के रूप में स्थापित होगा और पर्यटकों व भक्तों के आकर्षण का केंद्र बनेगा।