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'मैं नरक में था, टॉयलेट पिया...' झकझोर देगी म्यांमार भूकंप के 5 दिन बाद मलबे से बाहर आए टीचर की आपबीती

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Posted On:Friday, April 4, 2025

सागाइंग, म्यांमार: बुधवार को म्यांमार के सागाइंग क्षेत्र में आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप के बाद, एक गेस्टहाउस के मलबे से 47 वर्षीय शिक्षक टिन माउंग ह्टावे को सुरक्षित बाहर निकाला गया। इस भयानक त्रासदी में, जहां कई लोगों ने अपनी जान गंवाई, वहीं शिक्षक टिन माउंग की जीवित बचने की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं है। उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति, दशकों पुरानी स्कूली शिक्षा, और जीवित रहने के लिए अपनाए गए असाधारण उपायों ने उन्हें बचाए रखा।

स्कूली शिक्षा ने बचाई जान

जब भूकंप आया, तब टिन माउंग ह्टावे सागाइंग के सावल ताव नान गेस्टहाउस में रह रहे थे। उन्हें अपने बचपन की स्कूली शिक्षा याद थी, जिसमें उन्हें सिखाया गया था कि यदि भूकंप आए तो किसी मजबूत स्थान, जैसे कि बिस्तर के नीचे, शरण लेनी चाहिए। जैसे ही उन्होंने ऐसा किया, पूरा होटल ढह गया, और वे मलबे के नीचे फंस गए।

"मैंने तुरंत बिस्तर के नीचे शरण ली और फिर जोरदार झटकों के बीच इमारत गिर गई। चारों ओर धूल और मलबे का अंधेरा छा गया। मुझे केवल इतना याद है कि मैं चिल्लाया था, 'मुझे बचाओ!'” शिक्षक ने अपने अनुभव साझा किए।

पांच दिनों तक मलबे के नीचे कैसे जिंदा रहे?

गेस्टहाउस पूरी तरह से ईंटों और धातु की प्लेटों के ढेर में तब्दील हो गया था। इसके ऊपर की मंजिलें भी टूटकर नीचे गिर गई थीं, जिससे उनके बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा था। इस कठिन परिस्थिति में, उन्होंने अपने शरीर की गर्मी और पानी की कमी से निपटने के लिए एक असाधारण उपाय अपनाया – उन्होंने अपने शरीर के उत्सर्जित तरल पदार्थों का उपयोग किया।

उन्होंने बताया, "मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं नरक में हूं। मेरा शरीर बहुत गर्म हो रहा था और मुझे पानी की सख्त जरूरत थी। लेकिन पानी कहीं भी उपलब्ध नहीं था। इसलिए मैंने अपने शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थों का सेवन किया, जिससे मेरा जीवन बच सका।"

रेस्क्यू ऑपरेशन: उम्मीद की किरण

स्थानीय लोगों और म्यांमार रेड क्रॉस की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्य में लगी थीं। वे मलबे से शव निकाल रहे थे, और जीवित बचे लोगों की उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी थी। लेकिन तभी उन्हें टिन माउंग की हलचल महसूस हुई। तुरंत, मलेशियाई बचाव दल को बुलाया गया और पांच दिनों की अथक मेहनत के बाद, शिक्षक को सुरक्षित बाहर निकाला गया।

जब वे बाहर आए, तो उनका शरीर बेहद कमजोर था। उनकी नाक में ऑक्सीजन ट्यूब लगी थी और शरीर में दो अंतःशिरा (IV) ड्रिप लगाए गए थे।

भूकंप ने म्यांमार में मचाई तबाही

म्यांमार में आए इस भूकंप ने सागाइंग और मंडाले क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई। सागाइंग, जो भूकंप के केंद्र के सबसे करीब था, वहां की अधिकांश इमारतें ध्वस्त हो गईं। मुख्य सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे हो गए, जिससे राहत कार्यों में बाधा आई। सबसे बड़ी समस्या इरावदी नदी पर बने पुल के गिरने से हुई, जिससे दोनों शहरों का संपर्क टूट गया। इस पुल के 10 में से 6 हिस्से पानी में समा गए।

क्या कोई मलबे में इतने दिनों तक जीवित रह सकता है?

विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी भूकंप या आपदा के 72 घंटे (तीन दिन) के बाद मलबे में जीवित लोगों के मिलने की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है। अधिकांश बचाव कार्य पहले 24 घंटों के भीतर पूरे किए जाते हैं, क्योंकि समय बीतने के साथ जीवित बचने की संभावनाएं कम होती जाती हैं।

ब्राउन यूनिवर्सिटी के भूभौतिकीविद् विक्टर त्साई के अनुसार, किसी व्यक्ति के जीवित रहने की संभावना कई कारकों पर निर्भर करती है:

  • यदि वह किसी ऐसे स्थान पर फंसा हो, जहां पर्याप्त जगह हो और उस पर भारी मलबा न गिरा हो।

  • यदि उसे गंभीर चोट न लगी हो।

  • यदि वह किसी मजबूत वस्तु, जैसे कि बिस्तर, डेस्क, या किसी सुरक्षात्मक स्थान के नीचे शरण ले सके।

टिन माउंग ह्टावे की कहानी इस बात का प्रमाण है कि सही समय पर लिया गया निर्णय, धैर्य और इच्छाशक्ति किसी भी चुनौतीपूर्ण परिस्थिति में जीवन बचा सकते हैं।

म्यांमार में भूकंप से निपटने की तैयारियां

म्यांमार एक भूकंप प्रभावित क्षेत्र है, जहां समय-समय पर तेज झटके महसूस किए जाते हैं। हालांकि, इस त्रासदी ने सरकार और प्रशासन के आपदा प्रबंधन उपायों की सीमाएं उजागर कर दी हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि:

  • स्थानीय प्रशासन को मजबूत भवन निर्माण नियमों को लागू करना चाहिए।

  • आपदा प्रबंधन टीमों को तेजी से राहत कार्यों के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

  • भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में बचाव उपकरण और राहत सामग्री पहले से तैयार रखनी चाहिए।

  • नागरिकों को भूकंप के दौरान बचाव के सही तरीकों की ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।

निष्कर्ष

टिन माउंग ह्टावे की यह कहानी न केवल एक प्रेरणादायक घटना है, बल्कि यह इस बात का भी प्रमाण है कि सही ज्ञान और हिम्मत से बड़ी से बड़ी आपदा में भी जीवन बचाया जा सकता है। उनकी इस कहानी से यह भी सबक मिलता है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति जागरूकता और सही समय पर सही कदम उठाने की क्षमता किसी की भी जान बचा सकती है। अब म्यांमार और अन्य भूकंप प्रभावित देशों के लिए यह आवश्यक है कि वे इस घटना से सबक लें और भविष्य में ऐसी आपदाओं के लिए पहले से बेहतर तैयारी करें।


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