अयोध्या न्यूज डेस्क: सरकारी अस्पतालों की बदइंतजामी और स्वास्थ्य सेवाओं की हकीकत एक बार फिर सामने आ गई है। जिला अस्पताल और मेडिकल कॉलेज से रेफर होने वाले गंभीर मरीजों को लखनऊ में बेड नहीं मिल रहा, जिससे तीमारदार 108 एंबुलेंस में मरीजों को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भटकने को मजबूर हैं। डॉक्टरों से लाख मिन्नतों के बाद भी उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा, और इसका नतीजा यह है कि कई मरीज इलाज से पहले ही दम तोड़ रहे हैं।
ताजा मामला तारुन विकासखंड के गौरा गांव निवासी महेश निषाद की 11 वर्षीय बेटी सरस्वती का है, जिसे बुखार होने पर स्थानीय निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जब हालत नहीं सुधरी तो उसे जिला अस्पताल ले जाया गया, जहां से मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया गया। मेडिकल कॉलेज से भी उसे लखनऊ हायर सेंटर के लिए भेज दिया गया। यहां से शुरू हुआ भटकाव — महेश अपनी बेटी को लेकर 108 एंबुलेंस से लखनऊ के मेडिकल कॉलेज पहुंचे, लेकिन इमरजेंसी में पीली पर्ची बनवाने के बाद भी डॉक्टरों ने बेड न होने की बात कहकर मरीज को एंबुलेंस से उतारने से इनकार कर दिया।
महेश अपनी बेटी की जान बचाने के लिए डॉक्टरों से मिन्नतें करता रहा, लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई। मेडिकल कॉलेज के बाद राम मनोहर लोहिया अस्पताल और फिर पीजीआई ले जाया गया, मगर हर जगह से यही जवाब मिला — "बेड नहीं है।" आखिरकार मजबूरी में निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन 17 जुलाई की रात 10 बजे सरस्वती ने दम तोड़ दिया।
यह दर्द सिर्फ महेश निषाद का नहीं है, बल्कि हर उस परिवार का है जो सरकारी कागजों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का दावा सुनते-सुनते थक चुका है। इलाज के नाम पर मरीजों की यह भटकती तस्वीरें सरकार और सिस्टम की असली हालत बयां कर रही हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार कब जागेंगे और आम लोगों को इंसाफ मिलेगा?