चीन के वैज्ञानिकों ने जीन एडिटिंग तकनीक का इस्तेमाल करके एक विशेष प्रकार के फंगस में प्रोटीन का उत्पादन बढ़ाया है। यह प्रोटीन, जिसे मायकोप्रोटीन कहा जाता है, चिकन जैसे मांस का सस्ता और पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बनने की क्षमता रखता है। इस रिसर्च में CRISPR तकनीक का उपयोग Fusarium venenatum नामक फंगस को बेहतर बनाने के लिए किया गया है, जिसका उपयोग पहले से ही मीट जैसे स्वाद वाले खाद्य पदार्थ बनाने में होता है।
मायकोप्रोटीन: भविष्य का टिकाऊ भोजन
मायकोप्रोटीन, फंगस से प्राप्त होने वाला प्रोटीन है, जिसका टेक्सचर और स्वाद मांस जैसा होता है, लेकिन इसे बनाने में पारंपरिक पशुपालन की तुलना में संसाधनों की आवश्यकता बहुत कम होती है:
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संसाधन दक्षता: इसे बनाने में बहुत कम जमीन, कम पानी और कम ऊर्जा लगती है।
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पर्यावरण लाभ: यह चिकन फार्मिंग की तुलना में बहुत कम प्रदूषण फैलाता है, जल प्रदूषण का खतरा 78% कम करता है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी काफी कम होता है।
चीनी रिसर्च टीम के वैज्ञानिक लियू शियाओ के अनुसार, दुनिया की तेजी से बढ़ती आबादी को अब ऐसे प्रोटीन की जरूरत है जो अधिक पौष्टिक हो और पर्यावरण को नुकसान भी न पहुंचाए। जीन एडिटिंग ने इस फंगस को न सिर्फ अधिक पौष्टिक बनाया है, बल्कि इसका उत्पादन भी बहुत कम संसाधनों में होने लगा है।
वैश्विक प्रोटीन संकट और समाधान की आवश्यकता
दुनिया भर में पशुपालन लगभग 40% कृषि भूमि घेरता है, इसमें भारी मात्रा में पानी लगता है, और यह कुल ग्रीनहाउस गैसों का लगभग 14.5% उत्सर्जन करता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक लगातार वैकल्पिक प्रोटीन के नए स्रोत ढूंढ रहे हैं।
| एडिटेड फंगस के फायदे (पारंपरिक उत्पादन की तुलना में) |
| 44% कम पोषक तत्वों का उपयोग |
| 88% तेज बनता है |
| कुल मिलाकर पर्यावरण पर 61% तक कम असर |
| चिकन फार्मिंग की तुलना में 70% कम जमीन की जरूरत |
तकनीक और नियामक मंजूरी
वैज्ञानिकों ने CRISPR का उपयोग करके फंगस के मेटाबॉलिज्म में बदलाव किए। उन्होंने इसके अपने जीन बदले, जिससे कोशिकाओं में मौजूद अधिक प्रोटीन उपयोग में आने लगा। इससे उत्पाद की गुणवत्ता बढ़ी और उत्पादन में जरूरत पड़ने वाली शुगर लगभग 40% तक कम होने की संभावना है।
मायकोप्रोटीन पहले से ही अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में खाने के लिए मंजूर है। Quorn नाम की ब्रिटिश कंपनी इसी फंगस से नकली चिकन नगेट्स और मीट जैसे उत्पाद बनाती है। रिसर्च टीम ने छह देशों के ऊर्जा डेटा की तुलना करके बताया कि इस एडिटेड फंगस को अपनाने से पर्यावरणीय प्रभाव 4% से 61% तक कम हो सकता है। वैज्ञानिकों ने कहा कि CRISPR और मेटाबॉलिक इंजीनियरिंग भविष्य में टिकाऊ प्रोटीन बनाने के लिए सबसे शक्तिशाली तकनीक बन सकती है।