अयोध्या न्यूज डेस्क: अयोध्या में रामलला के गर्भगृह के सामने लगे परंपरागत पर्दे को अब बदल दिया गया है। पहले जहां मैरून रंग के मखमली पर्दे पर शंख और चक्र जैसे धार्मिक प्रतीक कढ़े हुए थे, वहीं अब इनकी जगह बादामी रंग का सादा और कढ़ाईदार पर्दा लगाया गया है। इस नए पर्दे पर कोई धार्मिक चिह्न नहीं हैं और यह दिनभर भोग के समय श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए हटाया जाएगा। इस बदलाव ने रामभक्तों और श्रद्धालुओं के बीच कई तरह की चर्चाएं शुरू कर दी हैं।
इस बीच अयोध्या में ब्रह्मचारियों के तिलक को लेकर एक नई बहस ने जन्म लिया है। लक्ष्मण किला में हाल ही में आयोजित यज्ञोपवीत संस्कार में वेद विद्यालय के ब्रह्मचारियों के मस्तक पर त्रिपुंड और उर्ध्व पुंड तिलक लगाए गए, जिससे लोगों के बीच मतभेद पैदा हो गया। सोशल मीडिया और स्थानीय धार्मिक मंचों पर इस विषय को लेकर लगातार चर्चा हो रही है कि वैष्णव नगरी अयोध्या में शैव परंपरा के प्रतीक क्यों धारण कराए जा रहे हैं।
इस मुद्दे पर बड़ा भक्तमाल के पीठाधीश्वर महंत अवधेश दास ने स्पष्ट किया कि अलग-अलग उपासना पद्धतियों में तिलक और वेशभूषा की परंपराएं भिन्न होती हैं और इन्हीं के आधार पर पहचान बनती है। उन्होंने कहा कि अयोध्या चूंकि राम की नगरी है, इसलिए यहां वैष्णव परंपरा का पालन किया जाना चाहिए। त्रिपुंड के कारण वेद विद्यालयों के छात्र शैव दिखने लगे हैं, जो भ्रम की स्थिति पैदा करता है। राम मंदिर के नए पर्दे से धार्मिक प्रतीकों का हटना भी इसी बहस को नया मोड़ दे रहा है।