अयोध्या न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश के वाराणसी से एक महत्वपूर्ण समाचार सामने आया है। ज्ञानवापी मामले में हिंदू पक्ष को एक बड़ा झटका लगा है, क्योंकि सिविल जज सीनियर डिवीजन के फास्ट ट्रैक कोर्ट ने उनकी प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया है। हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी परिसर में अतिरिक्त एएसआई सर्वे की मांग की थी, साथ ही यह दावा किया था कि केंद्रीय गुंबद के लगभग 100 फीट नीचे एक शिवलिंग है। इस पर मुस्लिम पक्ष ने खुदाई कराकर एएसआई सर्वे की मांग का विरोध किया था। कोर्ट के इस निर्णय के बाद अयोध्या के संतों ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
अयोध्या संत समिति के महामंत्री पवन दास शास्त्री ने कहा, “जिला अदालत द्वारा याचिका खारिज करने के बाद हमारे पास कई विकल्प हैं। हम उच्च न्यायालय में अपील करेंगे। हमारी याचिका के अस्वीकृत होने से हमारा मामला कमजोर नहीं होगा। ज्ञानवापी ज्ञानवापी है, था और रहेगा, और हम इसे हासिल करेंगे। कानूनी प्रक्रिया में कभी-कभी कुछ कमियां हो जाती हैं, लेकिन हम सकारात्मक हैं। यह नहीं समझा जाना चाहिए कि हिंदू पक्ष को हार का सामना करना पड़ा है। रामलला के मामले में भी पहले कई उतार-चढ़ाव आए थे, लेकिन अंत में रामलला के पक्ष में फैसला आया। ज्ञानवापी मामले में भी हिंदू पक्ष के लिए सकारात्मक परिणाम आएगा, और हम इसे हासिल करके रहेंगे।
राष्ट्रवादी बाल संत दिवाकर आचार्य ने कहा कि हिंदू समुदाय को न्याय के लिए निरंतर अपमान का सामना करना पड़ रहा है, और हिंदू आस्था पर हमले हो रहे हैं। न्याय प्रणाली को यह समझना चाहिए कि अड़चनें डालने और मामले को लटकाने से कुछ हासिल नहीं होगा; इससे केवल हिंदू आस्था और मजबूत होगी। उन्होंने कहा कि खारिज की गई याचिका के आधार पर हम उच्च न्यायालय में अपील करेंगे और इसे चुनौती देंगे। ASI सर्वेक्षण एक ऐसा मुद्दा है जो सभी को न्याय दिलाने में सहायक होगा। ज्ञानवापी में भगवान विश्वेश्वर नाथ की उपस्थिति है, और उम्मीद है कि इसका निर्णय भी राम जन्मभूमि मामले की तरह सकारात्मक आएगा।
स्थानीय संत सीताराम दास ने कहा कि यह निर्णय आश्चर्यचकित करने वाला है। प्रार्थना पत्र का खारिज होना दुखद और चिंताजनक है। हालांकि, इससे सनातनी लोग चिंतित नहीं होंगे। सनातनी उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए आगे बढ़ेंगे। सर्वेक्षण से यह स्पष्ट हो जाएगा कि ज्ञानवापी पर भगवान शिव विराजमान हैं।