अयोध्या न्यूज डेस्क: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में निर्वाचन आयोग द्वारा चलाए जा रहे मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण अभियान (एसआईआर) के दौरान साधु-संतों की एक अलग ही उलझन सामने आई है। अयोध्या धाम में रहने वाले बैरागी संतों के लिए पारिवारिक पहचान से जुड़े कॉलम भरना आसान नहीं रहा। हालांकि, अब संत समाज ने इस समस्या का व्यावहारिक समाधान भी निकाल लिया है, जिस पर पहले किसी का विशेष ध्यान नहीं गया था।
जब बीएलओ द्वारा भरे गए फार्मों की मैपिंग शुरू हुई, तब यह बात सामने आई कि कई संतों ने मां के नाम के स्थान पर मां जानकी का नाम दर्ज कर दिया है। वहीं, मंदिरों में स्थायी रूप से रहने वाले महंतों और संतों ने पिता के नाम की जगह अपने दीक्षा गुरु का नाम लिखा है। इसका नतीजा यह हुआ कि एक ही मंदिर में एक महंत के कई शिष्यों का नाम एक जैसी पहचान के साथ दर्ज हो गया। हालांकि कुछ संत ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने वास्तविक माता-पिता के नाम ही लिखे हैं।
जानकी घाट स्थित लंबे हनुमान मंदिर के महंत क्षविराम दास ने भी मां के कॉलम में माता सीता का नाम लिखा है। वहीं तपस्वी छावनी के महंत परमहंसाचार्य ने अपनी माता का नाम संतोषी चतुर्वेदी दर्ज किया है। परमहंसाचार्य बताते हैं कि अधिकतर बैरागी संत बचपन में ही घर छोड़ देते हैं और दीक्षा लेने के बाद उनकी पहचान गुरु और संप्रदाय से जुड़ जाती है। कई संतों को अपने माता-पिता का वास्तविक नाम तक ज्ञात नहीं होता, ऐसे में गुरु का नाम ही उनकी सामाजिक और दस्तावेजी पहचान बन जाता है।
इस पूरे मामले पर जिला प्रशासन ने भी स्पष्ट रुख अपनाया है। जिलाधिकारी निखिल टीकाराम ने कहा कि इस तरह के मामलों में किसी प्रकार की समस्या नहीं होगी। यदि कोई संत माता के नाम का कॉलम खाली भी छोड़ देता है, तब भी उसका फॉर्म निरस्त नहीं किया जाएगा। प्रशासन का कहना है कि साधु-संतों की जीवनशैली और परिस्थितियों को देखते हुए लचीलापन रखा गया है, ताकि कोई भी पात्र मतदाता सूची से वंचित न हो।