अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर एक विवादास्पद और प्रभावशाली कदम उठाया है। इस बार मामला है अफगानिस्तान में रह रहे और अमेरिका में शरण लिए अफगान नागरिकों का, जिनके लिए ट्रंप प्रशासन ने Temporary Protected Status (TPS) की सुविधा खत्म कर दी है। ट्रंप का कहना है कि अब अफगानिस्तान उनके लिए सुरक्षित है, इसलिए उन्हें अमेरिका में शरण देने की कोई जरूरत नहीं है।
क्या है Temporary Protected Status (TPS)?
TPS एक विशेष कानूनी दर्जा है जिसे अमेरिका सरकार कुछ विशेष देशों के नागरिकों को देती है, जहाँ युद्ध, प्राकृतिक आपदा या अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों के कारण लोग अपने देश वापस नहीं लौट सकते। इस स्टेटस के अंतर्गत नागरिकों को अमेरिका में रहने, काम करने और कुछ कानूनी अधिकार मिलते हैं। अफगानिस्तान के हजारों नागरिकों को यह सुविधा प्रदान की गई थी, विशेष रूप से उन लोगों को जिन्होंने अमेरिकी सेना या सरकार के लिए काम किया था।
ट्रंप का तर्क: अफगानिस्तान अब "सुरक्षित" है
ट्रंप प्रशासन ने अपने फैसले के पक्ष में यह दलील दी है कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान अब "स्थिर और नियंत्रण में" है, इसलिए अमेरिका में रहने वाले अफगानों को अब अपने देश लौट जाना चाहिए। ट्रंप ने कहा:
“अब समय आ गया है कि अफगानी नागरिक अपने देश की जिम्मेदारी लें और वहां लौटकर पुनर्निर्माण करें। अमेरिका अब किसी पर बोझ नहीं बन सकता।”
हालांकि यह बयान कई मानवाधिकार संगठनों और डेमोक्रेटिक नेताओं को नागवार गुजरा है। उनका मानना है कि तालिबान के शासन में अफगानिस्तान सुरक्षित नहीं है, खासकर उनके लिए जिन्होंने कभी अमेरिका के साथ सहयोग किया था।
ट्रंप का रुख: अमेरिका में 'असुरक्षित' अफगानी?
डोनाल्ड ट्रंप का यह फैसला ऐसे समय में आया है जब अमेरिकी रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) की वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान अब भी उन लोगों को हत्या और गिरफ्तारी का निशाना बना रहा है, जो पूर्व अफगान सरकार या सेना से जुड़े रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि तालिबान ने कई अफगान नागरिकों को गुप्त रूप से बंदी बनाया और उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया।
इसके बावजूद ट्रंप का कहना है कि अमेरिका अब अस्थायी शरणार्थी नीति को समाप्त करेगा, और अफगान नागरिकों को "स्वदेश लौटने की प्रेरणा" देनी चाहिए।
मानवाधिकार समूहों की प्रतिक्रिया
मानवाधिकार संगठनों और अमेरिका में रह रहे कई अफगानियों ने ट्रंप प्रशासन के इस फैसले की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि तालिबान के शासन में महिलाओं, बच्चों और अमेरिकी समर्थकों के लिए जीवन बेहद खतरनाक हो सकता है।
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट में कहा गया है:
“TPS खत्म करना उन हजारों अफगान नागरिकों को मौत के मुंह में धकेलने जैसा है, जिन्होंने कभी अमेरिका की मदद की थी।”
यूएस खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट और पाकिस्तान पर नजर
इसी दौरान अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट ने यह भी खुलासा किया है कि पाकिस्तान खुद गंभीर सुरक्षा चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिनमें बलूच विद्रोही, तालिबान और सिंध में फैलते अलगाववाद जैसे मुद्दे शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तानी सेना पर लगातार हमले हो रहे हैं, और यह क्षेत्रीय अस्थिरता बढ़ा सकता है। ऐसे माहौल में अफगानिस्तान की असुरक्षा और पाकिस्तान की सीमाओं से जुड़े खतरे और बढ़ जाते हैं।
क्या हो सकते हैं इसके परिणाम?
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हजारों अफगानियों का अमेरिका से निर्वासन संभव है, जिनमें से कई वर्षों से वहां रह रहे हैं।
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अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंच सकता है, क्योंकि ये वही अफगानी हैं जिन्होंने अमेरिका की मदद की थी।
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तालिबान के खिलाफ काम करने वालों की जान को खतरा हो सकता है।
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यह फैसला अमेरिकी घरेलू राजनीति में बड़ा मुद्दा बन सकता है, खासकर 2024 के राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनज़र।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा TPS खत्म करने और अफगानी शरणार्थियों को अमेरिका से वापस भेजने का फैसला सिर्फ राजनीतिक नहीं, मानवीय दृष्टिकोण से भी अत्यधिक गंभीर है। एक तरफ जहां ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अमेरिका की सीमाओं को सुरक्षित और नियंत्रित रखना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर यह उन हजारों अफगानों की न्याय और जीवन की सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला है जिन्होंने अमेरिका के लिए अपने प्राणों की बाज़ी लगाई।
ट्रंप की यह नीति एक बार फिर दिखाती है कि उनका "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडा कितना प्रभावी और कठोर हो सकता है — लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या यह इंसानियत के हित में है? यह आने वाले समय में अमेरिका की छवि, उसकी विदेश नीति और अफगान नागरिकों के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा, यह देखना बाकी है।