अमेरिकी राजनीति और ऊर्जा नीति में एक बड़ा मोड़ सामने आया है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अगले 25 वर्षों में अमेरिका का परमाणु ऊर्जा उत्पादन मौजूदा स्तर से 400 गुना बढ़ाने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस फैसले को आर्थिक आत्मनिर्भरता, ऊर्जा सुरक्षा और भविष्य की टेक्नोलॉजी के लिए ईंधन की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
क्या है ट्रंप का परमाणु आदेश?
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नई नीति के तहत अब अमेरिका में नए परमाणु रिएक्टरों के डिजाइन और परियोजनाओं को मंजूरी देने का अधिकार स्वतंत्र एजेंसियों से हटाकर सीधे सरकार को दे दिया गया है।
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पहले यह जिम्मेदारी एक न्यूक्लियर रेगुलेटरी कमिशन (NRC) जैसी स्वतंत्र एजेंसी के पास थी, जो सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करती थी।
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ब सरकार खुद निर्णय करेगी, जिससे परमाणु प्रोजेक्ट्स की फास्ट-ट्रैक मंजूरी संभव हो सकेगी।
क्या उठ रही हैं चिंताएं?
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विशेषज्ञों ने चेताया है कि स्वतंत्र निगरानी खत्म करने से सुरक्षा और पारदर्शिता पर खतरा मंडरा सकता है।
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परमाणु ऊर्जा एक संवेदनशील मामला है और इसमें सुरक्षा मानकों से कोई समझौता नहीं किया जा सकता।
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कई पर्यावरण विशेषज्ञों ने यह भी सवाल उठाया है कि क्या अमेरिका इस लक्ष्य को तकनीकी रूप से हासिल कर सकता है?
टेक्नोलॉजी, AI और ऊर्जा की मांग का लिंक
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गृह सचिव डग बर्गम ने कहा कि अमेरिका में डेटा सेंटर, एआई, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर की मांग तेजी से बढ़ रही है।
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इन सबको सपोर्ट करने के लिए अमेरिका को क्लीन, विश्वसनीय और सस्ती बिजली की जरूरत है – और इसका सबसे बड़ा समाधान ट्रंप सरकार को परमाणु ऊर्जा में दिखता है।
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उन्होंने दावा किया कि यह योजना अगले 50 सालों के अमेरिका का ऊर्जा भविष्य तय करेगी।
विशेषज्ञों की सच्चाई
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वास्तविकता यह है कि अमेरिका में पिछले 50 वर्षों में केवल दो बड़े परमाणु रिएक्टर ही बने हैं।
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फिलहाल कोई भी अगली पीढ़ी का व्यावसायिक न्यूक्लियर रिएक्टर सक्रिय नहीं है।
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इसीलिए, विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप का 400 गुना बढ़ोतरी का दावा अत्यंत कठिन और अव्यावहारिक है।
अमेरिका बनाम चीन – तकनीकी रेस में ऊर्जा की भूमिका
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अमेरिका की यह नीति चीन के खिलाफ तकनीकी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा भी मानी जा रही है।
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एआई आधारित हथियार, सुपरकंप्यूटिंग, और अंतरिक्ष ऊर्जा सिस्टम जैसी तकनीकें भारी बिजली की मांग करती हैं – जिसमें परमाणु ऊर्जा निर्णायक हो सकती है।
निष्कर्ष
ट्रंप की यह पहल परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव का संकेत देती है, लेकिन यह बदलाव सिर्फ आदेश से नहीं, बल्कि तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक तैयारियों से ही संभव है। अगर सरकार सुरक्षा मानकों के साथ तेजी से परमाणु विकास कर पाती है, तो यह अमेरिका को ऊर्जा महाशक्ति में बदल सकता है। लेकिन अगर पारदर्शिता और निगरानी से समझौता हुआ, तो यह एक जोखिम भरा दांव भी बन सकता है।