मुंबई, 18 जुलाई, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट का रुख करते हुए अपने खिलाफ कैश कांड में दोषी ठहराने वाली जांच रिपोर्ट को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने गुरुवार को दाखिल की गई अपील में कहा कि उनके खिलाफ जो कार्यवाही की गई, वह न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और उन्हें अपना पक्ष रखने का पूरा मौका नहीं दिया गया। उनका कहना है कि इस प्रक्रिया में एक नागरिक और संवैधानिक पदाधिकारी दोनों के अधिकारों का हनन हुआ है। यह याचिका ऐसे समय में आई है जब संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है, जिसमें जस्टिस वर्मा को पद से हटाने के लिए प्रस्ताव लाया जा सकता है। कांग्रेस पार्टी ने साफ किया है कि वह इस प्रस्ताव का समर्थन करेगी और इसके लिए उनके सांसद हस्ताक्षर भी करेंगे। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह प्रस्ताव महाभियोग नहीं है, बल्कि जजेज इन्क्वायरी एक्ट 1968 के तहत जांच समिति गठित करने के लिए लाया जा रहा है, जो रिपोर्ट देगी और उसी के आधार पर आगे की संसदीय कार्यवाही होगी। रमेश ने आरोप लगाया कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजी गई चिट्ठी ने सांसदों को इस कदम के लिए बाध्य किया। इसके साथ ही विपक्ष जस्टिस शेखर यादव के मामले को भी उठाने की तैयारी में है, जिन पर सांप्रदायिक भाषण देने का आरोप है। उनके खिलाफ राज्यसभा में पहले ही 55 सांसदों द्वारा प्रस्ताव दिया जा चुका है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जस्टिस वर्मा का नाम उस समय चर्चा में आया जब 14 मार्च की रात उनके दिल्ली स्थित लुटियंस बंगले में आग लग गई थी।
अग्निशमन विभाग ने आग पर काबू पाया, लेकिन इसके बाद 21 मार्च को कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह दावा किया गया कि उनके आवास से 15 करोड़ रुपये नकद मिले, जिनमें से कई नोट जल चुके थे। इस घटना के बाद तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना ने एक तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया, जिसने 4 मई को अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए जस्टिस वर्मा को जिम्मेदार ठहराया। यह समिति पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधवालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज जस्टिस अनु शिवरामन की थी। रिपोर्ट 19 जून को सार्वजनिक की गई, जिसमें कहा गया कि जस्टिस वर्मा और उनके परिजनों का उनके बंगले के स्टोर रूम पर सीधा नियंत्रण था। दस दिनों तक चली जांच के दौरान 55 गवाहों से पूछताछ की गई और स्टोर रूम का निरीक्षण भी किया गया। दिल्ली फायर सर्विस के अफसर अंकित सेहवाग ने अपने बयान में बताया कि उन्हें दमकलकर्मियों ने बताया कि स्टोर रूम में करेंसी नोट जल रहे थे। टॉर्च की रोशनी में देखने पर उन्होंने बड़ी संख्या में जले हुए 500 रुपये के नोट देखे। वहीं, सीआरपीएफ के जवानों और सुरक्षा कर्मियों ने पुष्टि की कि स्टोर रूम पर ताला रहता था और बिना अनुमति वहां प्रवेश संभव नहीं था। इस पूरी रिपोर्ट के आधार पर ‘इन-हाउस प्रोसीजर’ के तहत सीजेआई ने सरकार से जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की है। अब सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जस्टिस वर्मा की याचिका से यह मामला नया मोड़ ले सकता है।